बालाघाट। भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ाने प्रारंभ हुई प्राकृतिक खेती...

120 किसान कर रहे किसानी
बालाघाट। जिले में अब तक देखा जाता था कि किसानों के द्वारा रासायनिक खेती ही अधिकतर करते थे और कर रहे है लेकिन अब कुछ किसान ऐसे भी हो प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने ने के लिए किसानी कर रहे है जो एक किसान से शुरू होकर 120 किसानों तक पहुंच गई है। रासायनिक खाद से धान की खेती करना अब किसानों के लिए महंगा साबित हो रहा हैं। इससे बचने किसान प्राकृतिक खेती अपनाने लगे है। वैसे तो इसकी शुरुआत आदिवासी इलाके में एक किसान द्वारा चार साल पूर्व गई। लेकिन इस साल 25 गांवों में 120 किसानों तक यह खेती पहुंच गई है। दरअसल, प्राकृतिक खेती करने से लागत कम होने के साथ ही भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ती है। इस खेती में गाय के गोबर, गोमूत्र, बेसन, गुड़ और पानी का घोल तैयार कर छिड़काव किया जाता है।इसमें लागत कम लगने से फसल उत्पादन अच्छा मिलने लगता है।
आदिवासी कर रहे प्राकृतिक खेती
जिले की बिरसा तहसील के जगला गांव में रहने वाले किसान गोवर्धन पटले ने बताया कि चार साल से धान से लेकर रबी की फसल प्राकृतिक खेती से ले रहे है। जिसमें गाय का गोबर, गोमूत्र, बेसन, गुड़ से तैयार प्राकृतिक खाद का उपयोग करते है। इस खाद का उपयोग खेती में करने पर प्रति एकड़ 10 से 12 क्विंटल धान का उत्पादन हो रहा है। अब प्राकृतिक खेती आदिवासी इलाकों के 25 गांवों में 120 किसान तक पहुंच गई है और 150 एकड़ में खेती होगी। इस खेती से भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ती है। इसमें 10 लीटर गाय का गोबर, 10 लीटर गोमूत्र, आधा किलो बेसन, 200 ग्राम गुड़ और 10 लीटर पानी मिलाकर तैयार करके खेती में डालने के बाद पानी सिंचाई करना पड़ता है।
रासायनिक खाद मिल रहा महंगा
किसानों ने बताया कि रासायनिक खाद से प्रति एकड़ 15 से 16 क्विंटल धान का उत्पादन हो रहा है। रासायनिक खाद डीएपी की एक बोरी 1250 रुपये और यूरिया की बोरी 268 रुपये में मिल रही है। लेकिन प्राकृतिक खेती सस्ते दाम पर हो जाती है। साथ ही भूमि की उर्वरा शक्ति भी बढ़ती है।
ऐसे बनती है खाद
गाय का गोबर, गोमूत्र, बेसन, गुड़ व पानी से मिलकर बनता है प्राकृतिक खाद।
एक सप्ताह में तैयार होता है प्राकृतिक खाद।
प्राकृतिक खेती करने में लगती है कम लागत।
माह में चार बार फसल में डालना पड़ता है।
इनका कहना है
गाय के गोबर और गोमूत्र में सभी तरह के पोषक तत्व पाए जाते है। इसमें चना का बेसन व गुड़ चारों का घोल मिलाकर धान की फसल में उपयोग किया जाता है। इससे भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ती है। इसको प्राकृतिक खेती कहा जाता है। इस खेती को करने सरकार द्वारा भी किसानों को प्रोत्साहित किया जा रहा है।
डा.आरएल राउत
प्रमुख वैज्ञानिक
कृषि वैज्ञानिक केंद्र बडग़ांव बालाघाट
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